मजरूह सुलतानपुरी वाक्य
उच्चारण: [ mejruh suletaanepuri ]
उदाहरण वाक्य
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- मजरूह सुलतानपुरी, गुलज़ार और जावेद अख़्तर जैसी हस्तियाँ अपने
- मजरूह सुलतानपुरी का शेर है-रोक सकता हमें ज़िन्दाने बला क्या।
- अवध से कई पटकथा लेखक एवं गीतकार बा, जैसे मजरूह सुलतानपुरी,
- इस गीत को मजरूह सुलतानपुरी ने लिखा था और सन् 1959 के साथ यह जारी हुआ था।
- दरअसल ख्वाब का दर बंद है किताब का टाइटिल देखकर ही मजरूह सुलतानपुरी ने शहरयार को निराशावादी बताया।
- मजाज़, जाँनिसार अख़्तर, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी और सज्जाद ज़हीर की परिपाटी को वह अंतिम समय तक जीवित रखे रहे.
- असरार उल हसन खान उर्फ मजरूह सुलतानपुरी का जन्म वर्ष 1919 में उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले में हुआ था।
- लता मंगेशकर, मजरूह सुलतानपुरी और आर.डी.वर्मन जैसे दिग्गजों के संगम द्वारा प्रस्तुत इस मधुर लोरी को सुनाने के लिए धन्यवाद.
- शकील बदायुँनी, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुलतानपुरी के अनमोल शब्दों पर तलत महमुद ने अपनी मखमली आवाज का जामा पहनाया।
- कुछ लोग तो अपने नाम के साथ उसे नत्थी कर लेते हैं जैसे वसीम बरेलवी, मजरूह सुलतानपुरी, कैफी आजमी.
- आशा भोसले, किशोर कुमार और साथियों की आवाज़ों में राहुल देव बर्मन की यह कम्पोज़िशन बनी थी मजरूह सुलतानपुरी के बोलों पर।
- आशा भोसले, किशोर कुमार और साथियों की आवाज़ों में राहुल देव बर्मन की यह कम्पोज़िशन बनी थी मजरूह सुलतानपुरी के बोलों पर।
- पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, शायर मजरूह सुलतानपुरी, गुलज़ार और जावेद अख़्तर जैसी हस्तियाँ अपने काव्य-पाठ से परिवार के मंच को गरिमा प्रदान कर चुकी हैं ।
- देखिये ना, जनाब मजरूह सुलतानपुरी अँधेरे के बीच खड़े होकर आवाजें लगा रहे हैं, उस हमसफर के लिये जो ना जाने कहाँ गुम हो गया है!
- फ़िल्म आग का ‘ न आँखों में आँसू, न होठों पे हाय ' (मजरूह सुलतानपुरी) जिसने ऐसा डायमंड गीत दिया उसके साथ ऐसी बेवफ़ाई तो हमने कभी नहीं देखी।
- मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़ी आज़मी, मजाज़ लखनवी, साहिर लुधियानवी, शकील बदायुनी, शेलेन्द्र, नौशाद, शंकर-जयकिशन, एस डी बर्मन आदि लेखक व संगीतकार भारत के रत्न हैं.
- एक ज़माने में मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़ी आज़मी, मजाज़ लखनवी और साहिर लुधियानवी जैसे शायरों ने हिंदी फ़िल्मों के लिए कालजयी गीत लिखे जिन्हें हम और आप आज भी रस में भर कर गुनगुनाते हैं.
- कार्यक्रम के दौरान ज़ावेद अख़्तर ने संगीत की ताक़त की बात करते हुए मजरूह सुलतानपुरी का यह शेर पढ़ा था ‘रोक सकता हमें ज़िंदाने बला क्या मजरूह हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं. '
- कार्यक्रम के दौरान ज़ावेद अख़्तर ने संगीत की ताक़त की बात करते हुए मजरूह सुलतानपुरी का यह शेर पढ़ा था ‘रोक सकता हमें ज़िंदाने बला क्या मजरूह हम तो आवाज़ हैं दीवारों से छन जाते हैं. '
- मजरूह सुलतानपुरी के कलम की स्याही नज्मों की शक्ल में फैली जिसने उर्दू शायरी को न सिर्फ मोहब्बत के सब्जबागों से निकालकर दुनिया के दीगर पहलुओं से जोड़ा बल्कि रूमानियत को भी नया रंग और ताजगी दी।
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